राबड़ी के बाद बिहार को नई रानी की दरकार!

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

बिहार की राजनीति में ‘संघर्ष’ एगो ऐसा शब्द बा, जेकर गूंज हर चुनाव में सुनाई देला। जात, धरम, इलाका, गोत्र—सब मिलाकर सत्ता के संग्राम एतना जटिल बा कि ओह में महिला नेता के जगह ढूंढे में लुका-छिपी होत रहेला।

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राबड़ी देवी: पर्दा से सत्ता तक के सफर की कहानी

1997 में जब राबड़ी देवी सीएम बनली, त पूरा देश चौंक गइल। एकदम घरेलू महिला से एक राज्य के मुखिया बन जाना, ऊ भी बिहार में—एहसे बड़का झटका त राजनीति में बिरले ही देखे के मिलेला। लोग कहले, “लालू के कठपुतली हई”, बाकिर ऊ कठपुतली 8 साल तलक गद्दी पर टिकल रहली। कहे के मतलब ई बा कि चाहे प्रयोग कहल जाव, बदलाव के बीज त बोवले गइले।

लेकिन राबड़ी के बाद खालीपन काहे?

राबड़ी देवी के बाद बिहार में महिला चेहरा सीएम पद तक ना पहुंच सका। कइएक नाम आइल—मीसा भारती, रेणु देवी, अनीता सिंह—but ई सब या त परिवारवाद के प्रतीक बन गइलें, या फिर पुराना नेताओं के छाया में गुम हो गइलें।

कौन-कौन हैं लाइन में?

मीसा भारती:

राबड़ी के बेटी, लालू यादव के उत्तराधिकारी के रूप में देखल जाली। बाकिर ज़मीन से जुड़ाव के भारी कमी, और अब तक जनता से भरोसा ना मिलल।

रेणु देवी:

बीजेपी के सीनियर नेता, उपमुख्यमंत्री रह चुकल बाड़ी। पिछड़ा वर्ग के चेहरा हईं, बाकिर पार्टी उहाँ के सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट ना करेली।

अनामिका सिंह और प्रगति मेहता जैसन युवा चेहरा:

नई सोच, भाषण के धमाका, जनता से जुड़ाव बा—बाकिर मीडिया कवरेज और हाईकमान से सपोर्ट नइखे। खाली सोशल मीडिया से नेता बनल नइखे।

राजनीति में औरत के राह अबहियों दुश्वार बा

बिहार में आजुओ राजनीति पुरुष-केंद्रित बा। महिलन के या त आरक्षण के नाम पर, या परिवारवाद के सौगात मानल जाला। जबले ‘कोटा से नेता’ वाली सोच बदलबे ना करी, तब तक सत्ता दूर रही।

महिला आरक्षण कानून: बदलेगा बिहार का सियासी नक्शा?

हाल में पास भइल महिला आरक्षण कानून से उम्मीद जागल बा। विधानसभा में 33% आरक्षण मिल सकेला, जवन महिला वोटर (जिनकर संख्या 2020 में पुरुष से ज्यादा रहल) के राजनीति में निर्णायक बना सकेला।

“राबड़ी 2.0” के तलाश: अगली नेता कहां से आएंगी?

अब अगली महिला नेता राबड़ी जइसन ‘संयोग’ से ना, ‘संघर्ष’ से निकले वाली होखी। ऊ कवनो गांव से, विश्वविद्यालय से, या सोशल आंदोलन से हो सकेली। राजनीति अब ‘नेतागीरी’ से ज़्यादा ‘लीडरशिप’ मांगे लागल बा।

“बिहार के राजनीति के चाहीं एगो नई रानी!”

राबड़ी देवी एगो परंपरा शुरू कइली, बाकिर ई कहानी अधूरी बा। 2025 के चुनाव एगो मोका बा, जवन महिला नेता के सिर्फ वोट बैंक ना, बलुक नीति निर्धारक बनावे। बिहार अब इंतजार कर रहल बा—कवनो नई रानी के, जवन राजनीति के भाषा बदल सके।

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